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त्रिं॒शद्धाम॒ वि रा॑जति॒ वाक्प॑तं॒गाय॑ धीयते । प्रति॒ वस्तो॒रह॒ द्युभि॑: ॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

triṁśad dhāma vi rājati vāk pataṁgāya dhīyate | prati vastor aha dyubhiḥ ||

पद पाठ

त्रिं॒शत् । धाम॑ । वि । रा॒ज॒ति॒ । वाक् । प॒त॒ङ्गाय॑ । धी॒य॒ते॒ । प्रति॑ । वस्तोः॑ । अह॑ । द्युऽभिः॑ ॥ १०.१८९.३

ऋग्वेद » मण्डल:10» सूक्त:189» मन्त्र:3 | अष्टक:8» अध्याय:8» वर्ग:47» मन्त्र:3 | मण्डल:10» अनुवाक:12» मन्त्र:3


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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वाक्) पृथिवी (वस्तोः) दिन के-अहोरात्र के (त्रिंशत्-धाम) तीस मुहूर्त घड़ी नामक को (विराजति) प्राप्त होती है (द्युभिः) दिनों से दिनों दिन (पतङ्गाय) सूर्य में (प्रति धीयते-अह) निरन्तर आश्रय लेती है ॥३॥
भावार्थभाषाः - पृथिवी पर दिन-रात में तीस मुहूर्त घड़ियों के रूप में होते हैं, पृथिवी के सूर्य पर आश्रित होने पर ॥३॥
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ब्रह्ममुनि

पदार्थान्वयभाषाः - (वाक्-वस्तोः-त्रिंशत्-धाम-विराजति) पृथिवी “इयं पृथिवी वै वाक्” [श० ४।६।९।१६] “वागिति पृथिवी” [जै० ३।४।२२।२१] दिनस्य-अहोरात्रयोः “वस्तोः-अहर्नाम” [निघ० १।९] त्रिंशन्मुहूर्तानि धामानि घटिकाख्यानि प्राप्नोति (द्युभिः-पतङ्गाय प्रतिधीयते-अह) दिनैः-सा पृथिवी सूर्ये ‘सप्तम्यर्थे चतुर्थी’ आश्रयति, “त्रिंशद्धाम विराजति वाक् पतङ्गे-अशिश्रियत्” [अथर्व० ९।३।३] ॥३॥